पंडित द्रोण बुद्ध के पास आया। उसने पूछा, “क्या आप देव हैं?” बुद्ध ने कहा, “नहीं।” उसने पूछा, “तो क्या गंधर्व हैं?” बुद्ध ने कहा, “नहीं।” फिर पूछा, “क्या यक्ष हैं?” बुद्ध ने कहा, “नहीं।” फिर पूछा, “क्या आदमी ही हैं?” बुद्ध ने कहा, “नहीं।” द्रोण ने हैरान होकर कहा, “क्या पशु-पक्षी हैं?” बुद्ध ने कहा, “नहीं।” उसने कहा, “तो क्या आप पत्थर-पहाड़ हैं?” बुद्ध ने कहा, “नहीं।” तो उसने कहा, “फिर आप कौन हैं? क्या हैं?” बुद्ध ने कहा, “वासनाएं, इच्छाएं, दुष्कर्म, सत्कर्म जिनका अस्तित्व मुझे देव, गंधर्व, यक्ष, आदमी,या पत्थर बना सकता था वे समाप्त हो गयी हैं।अब मैं इनमें से कुछ भी नहीं हूँ; मैं जागा गया हूँ; मैं बुद्ध हूँ।” बुद्ध का अर्थ होता है, जागा हुआ चित्त। बुद्ध का अर्थ होता है, जिसकी मूर्च्छा टूट गयी। बुद्धत्व का अर्थ होता है, होश। बुद्धत्व चैतन्य की प्रकाशमान दशा का नाम है। ओशो का प्रवचन सुनने के लिए ये विडियो प्ले करें , क्या भगवान है ?
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